क्वार्टरली रिजल्ट्स - व्याख्या और विश्लेषण

क्यूरेट बाय
संतोष पासी
ऑप्शन ट्रेडर और ट्रेनर; सेबी रजिस्टर्ड रिसर्च एनालिस्ट

आप यहाँ क्या सीखेंगे :

  • क्वार्टरली रिपोर्ट या रिजल्ट्स क्या हैं?
  • क्वार्टरली रिजल्ट्स की स्ट्रक्चर और उसका एनालिसिस कैसे करें?
  • स्टॉक मार्केट्स में क्वार्टरली रिजल्ट्स कैसे रेलिवेंट हैं?

सभी लिस्टेड कंपनियों को हर क्वार्टर में अपने फाइनेंसियल परफॉरमेंस की घोषणा करनी होती है। क्वार्टरली रिपोर्ट या रिजल्ट्स इन्वेस्टर्स को ये समझने में मदद करते हैं कि कंपनी अपने एनुअल और लॉन्ग-टर्म गोल की दिशा में क्या प्रोग्रेस कर रही है। ये उन्हें फैसलों के लेने में भी मदद करता है कि क्या इनवेस्टेड रहने के लायक है या कंपनी से बाहर निकलना चाहिए। अगर आप स्टॉक मार्केट में दबदबा बनाने की सोच रहे हैं, तो क्वार्टरली रिजल्ट्स को पढ़ने में सक्षम होना एक एसेट होगा।

Quarterly Results Interpretation and Analysis

क्वार्टरली रिजल्ट्स में सेगमेंट रिजल्ट्स के साथ-साथ प्रॉफिट और लॉस का एक अनऑडिटेड स्टेटमेंट शामिल होता है। कंपनियों को अपने छह महीने और एनुअल रिजल्ट्स को बैलेंस शीट और कैश फ्लो स्टेटमेंट में भी शामिल करना ज़रूरी है। स्टॉक एक्सचेंजों के साथ लिस्टिंग क्लॉज एग्रीमेंट्स के अनुसार रिजल्ट डिक्लेअर करना भी ज़रूरी है।

क्वार्टर, अर्थ और रिप्रेसेंटेशन

फाइनेंसियल ईयर कैलेंडर ईयर से अलग होता है। कैलेंडर ईयर जनवरी में शुरू होता है, फाइनेंसियल ईयर अप्रैल में शुरू होता है। एक फाइनेंसियल ईयर में चार क्वार्टर्स होते हैं। यहाँ डिटेल्स हैं:

  • Q1 (अप्रैल-जून)
  • Q2 (जुलाई-सितंबर)
  • Q4 (अक्टूबर-दिसंबर)
  • Q4 (जनवरी-मार्च)

कंपनी हाफ-ईयरली और एनुअल रिजल्ट्स के अलावा क्वार्टरली रिजल्ट घोषित करती है हाफ-ईयरली रिजल्ट्स Q2 में घोषित किया जाता है, जबकि एनुअल रिजल्ट्स Q4 में घोषित किया जाता है। ईयर टू डेट (वायटीडी) छह और नौ महीने के रिजल्ट कंपनी के परफॉरमेंस की प्रोग्रेस की जांच करने में मदद करते हैं। Q2 के लिए वायटीडी हाफ-ईयरली होगा और Q3 के लिए, यह नौ महीने की रिपोर्ट होगा रिजल्ट्स घोषित करने का टाइम लिमिट क्वार्टर के अंत से (Q1, Q2 और Q3) के लिए 45 दिन है। लास्ट क्वार्टर के लिए, टाइम लिमिट 60 दिन है।

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क्वार्टरली रिजल्ट्स कैसे पढ़ें

क्वार्टरली रिजल्ट्स करंट क्वार्टर रिजल्ट्स को क्वार्टर-ओवर-क्वार्टर तुलना करता है जो सक्सेसिव पिछली क्वार्टर रिजल्ट्स के साथ की जाती है और पिछले साल की इसी क्वार्टर के साथ साल-दर-साल में किया जाता है।

उदाहरण के लिए, अगर फाइनेंसियल ईयर 2022 के लिए Q3 रिजल्ट घोषित किए जाते हैं, तो क्यूओक्यू एफवाई 2022 की Q2 होगी और वाईओवाई एफवाई2021 की Q3 होगी। घर चलाने के लिए एक उदाहरण इस तरह है:

विवरण Q2-FY2022 Q3-FY2022 क्यूओक्यू Q3-FY2021 वाईओवाई नेट सेल 1000 1100 10% 900 22% नेट प्रॉफिट 200 240 20% 186 29% नेट मार्जिन 20 22 20 बीपीएस 21 10 बीपीएस

क्यूओक्यू और वाईओवाई की तुलना करने से ये समझने में मदद मिलेगी कि कंपनी बढ़ रही है या नहीं। रिजल्ट्स की तुलना करने के लिए क्यूओक्यू और वाईओवाई दोनों महत्वपूर्ण पहलू हैं। मार्केट या एनालिस्ट की उम्मीद के बारे में जागरूक होना एक और महत्वपूर्ण पहलू है। कई एनालिस्ट कंपनी को ट्रैक करते हैं और वे कंपनी के क्वार्टरली रिजल्ट्स के लिए अपने ग्रोथ का अनुमान लगाते हैं। इन अनुमानों के एवरेज को मार्केट्स एक्सपेक्टेशन या कॉमन कंसेंसस एस्टिमेट्स के रूप में जाना जाता है। स्टॉक की कीमतें एनालिस्ट की एक्सपेक्टेशन से प्रभावित होती हैं। अगर रिजल्ट्स मार्केट की उम्मीदों को मात देते हैं तो यह पॉजिटिवऔर अगर यह उम्मीदों से कम हो जाता है तो नेगेटिव रिएक्शन करता है।

क्वार्टरली रिजल्ट्स का स्ट्रक्चर

सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (सेबी) ने क्वार्टरली रिजल्ट्स घोषित करने के लिए फोर्मट्स फिक्स किए हैं। इसे इन सेक्शंस में डिवाइड किया गया है:

क्वार्टरली रिजल्ट्स का एनालिसिस

क्वार्टरली रिजल्ट्स का एनालिसिस करने में उपर दिए गए रिजल्ट्स के हर एक सेक्शन की जांच करना शामिल है।

इनकम एनालिसिस: इस सेक्शन में ऑपरेशन्स और अदर इनकम से इनकम शामिल है। ग्रोथ के ट्राजेक्टोरी को डेटर्मिन करने के लिए ऑपरेशन्स से इनकम की तुलना क्यूओक्यू और वाईओवाई से की जानी चाहिए।

उदाहरण के लिए, ऊपर देख सकते हैं कि Q3 FY-22 के लिए ऑपरेशन्स से होने वाली इनकम में 5707.47 करोड़ रुपये की इन्क्रीमेंट हुई है, जबकि क्यूओक्यू में 5073.32 करोड़ रुपये और सालाना आधार पर 5194.66 करोड़ रुपये की इनकम हुई है। यह परसेंटेज के टर्म में ग्रोथ को समझने में मदद करता है। ऑपरेशन्स से होने वाली इनकम में 12% क्यूओक्यू और 9.87% वाईओवाई की इन्क्रीमेंट हुई है। वाईटीडी आधार पर, ऑपरेशन्स से होने वाली इनकम में 24.23% की इन्क्रीमेंट हुई है।

ग्रोथ फार्मूला (करंट नंबर /प्रीवियस नंबर -1) X प्रीवियस नंबर है।

एक्सपेंडिचर एनालिसिस: मेजर एक्सपेंडिचर आइटम्स जैसे रॉ मटेरियल की कॉस्ट, एम्प्लोयी सैलरी, ऑपरेटिंग एक्सपेंसेस और अदर एक्सपेंसेस इत्यादि के लिए एक जैसा एनालिसिस किया जाना चाहिए। एक्सपेंडिचर में बढ़ोतरी या कमी की जांच की जानी चाहिए और पॉसिबल वजहों की जांच भी की जानी चाहिए।

उदाहरण :

  • रॉ मटेरियल की कॉस्ट: उपर दिए गए उदाहरण में, रॉ मटेरियल की कॉस्ट में 27.68% और 68.24% की बढ़ोतरी हुई है। दूसरी ओर, क्यूओक्यू में रॉ मटेरियल की कॉस्ट में 5.58% की कमी आई है। क्यूंकि कंपनी एक ऐसे इंडस्ट्री से जुडी है जिसका रॉ मटेरियल क्रूड ऑइल से मिलता है, क्रूड ऑइल की कीमतों में बढ़ोतरी होने की वजह से कॉस्ट बढ़ गया है।
  • अदर एक्सपेंसेस: इनमें क्यूओक्यू और वाईओवाई में 8.12% और 14.95% की बढ़ोतरी देखी गई है। वाईटीडी आधार पर इसमें 28.88% की ग्रोथ हुई है।

प्रॉफिट एनालिसिस: मल्टी-फोल्ड एनालिसिस, किसी को ये समझने के लिए अलग अलग लेवल पर मुनाफे की जांच करनी होगी कि कंपनी ऑपरेटिंग लेवल पर कैसा परफॉर्म कर रही है - क्या प्रॉफिट इंटरेस्ट और टैक्सेस को कवर करने के लिए काफी है और टॅक्स के बाद प्रॉफिट शेयरहोल्डर्स के लिए छोड़ दिया गया है। प्रॉफिट का उसी तरह एनालिसिस किया जाना जैसे ग्रोथ इनकम के लिए किए जाता है । ये समझना चाहिए कि सिर्फ रेगुलर एक्सपेंस और इनकम को ही एनालिसिस के लिए लिया जाता है और एक्स्ट्राआर्डिनरी इनकम और एक्सपेंस को बाहर रखा जाता है। इन सब प्रॉफ़िट्स की बढ़ोतरी या कमी की जांच की जानी चाहिए और वजहों की जांच भी करनी चाहिए।

ऑपरेटिंग प्रॉफिट: कंपनी के कोर ऑपरेशंस से जेनेरेट की गयी। इसकी कैलकुलेशन इस प्रकार की जाती है:

टोटल रेवेन्यू माइनस टोटल ऑपरेटिंग एक्सपेंसेस

एक्सपेंसेस में डेप्रिसिएशन, इंटरेस्ट और टैक्सेज शामिल नहीं होंगे और अन्य इनकम को भी बाहर रखा जाएगा।

इंटरेस्ट और टैक्सेस से पहले की कमाई (ईबीआईटी): कुल रेवेन्यू से इंटरेस्ट और टैक्स को छोड़कर सभी खर्चों को घटाकर निकाला जाता है।

प्रॉफिट बिफोर टॅक्स (पीबीटी): टैक्सेस को छोड़कर सभी खर्चों को रेवेन्यू से घटाकर निकाला जाता है।

प्रॉफिट आफ्टर टॅक्स (पीएटी): टॅक्स सहित सभी खर्चों में कटौती के बाद प्रॉफिट ।

मतलब रेवेन्यू और प्रॉफिट से दो एलिमेंट का रेश्यो है। यह ये बताता है कि रेवेन्यू या प्रॉफिट में ग्रोथ, मार्जिन या वॉल्यूम में कमी की वजह से होती है। मार्जिन जितना ज़ायदा होगा, उतना ही अच्छा होगा। प्रोफिटेबिलिटी भी मल्टी -फोल्ड एनालिसिस है क्योंकि आपको अलग अलग प्रॉफिट लेवल पर प्रोफिटेबिलिटी की जांच और एनालिसिस करने की ज़रूरत है:

  • ऑपरेटिंग मार्जिन रेश्यो से होने वाले रेवेन्यू से ऑपरेटिंग प्रॉफिट का रेश्यो है। मार्जिन में बढ़ोतरी और कमी की जांच की जानी चाहिए। मार्जिन में बढ़ोतरी का मतलब है कि कंपनी ने कीमतों में बढ़ोतरी की है और इससे वॉल्यूम पर असर पड़ सकता है। कमी का मतलब ये हो सकता है कि कंपनी ने कीमतों में कटौती की है और वॉल्यूम में सुधार हुआ है। दोनों वजहों की जांच की जानी चाहिए।
  • ईबीआईटी मार्जिन, ईबीआईटी रेवेन्यू से रेश्यो है। ये इंटरेस्ट और टैक्सेस को कवर करने के लिए उपलब्ध प्रॉफिट परसेंटेज दिखता है। मार्जिन में बढ़ोतरी का मतलब है कि प्रॉफिट, इंटरेस्ट और टैक्सेस को कवर करने के लिए अच्छा हो रहा है और इसके अपोजिट कमी के लिए होता है।
  • पीबीटी मार्जिन, रेवेन्यू से पीबीटी का रेश्यो है और टैक्सेस के पेमेंट से पहले मार्जिन को बताता है
  • पीएटी मार्जिन रेवेनुए के लिए पीएटी का रेश्यो है जो उस मार्जिन को दिखता है जो कंपनी सभी खर्चों के पेमेंट करने के बाद करती है। ये सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि ये बिज़नेस चलाने के लिए कंपनी की क्षमता को दिखाता है।

अदर कॉम्प्रिहेंसिव इनकम या लॉस: ये ऐसी आइटम हैं जहाँ अनरियलाइज़्ड इनकम और गेन रिकॉर्ड किए जाते हैं, जो इन्फॉर्मेशनल होते हैं और उन्हें नोट किया जाना चाहिए।

टोटल कॉम्प्रिहेंसि इनकम: ये प्रॉफिट और कॉम्प्रिहेंसिव इनकम दोनों का टोटल है, जिसे शेयरहोल्डर्स के फंड मेंट्रांसफर किया जाता है।

पेड उप इक्विटी कॅपिटल और अर्निंग्स पर शेयर: आउटस्टैंडिंग इक्विटी कॅपिटल, फेस वैल्यू और पर शेयर अर्निंग्स (ईपीएस)। ईपीएस सबसे महत्वपूर्ण इंडिकेटर है क्योंकि ये पर शेयर प्रॉफिट को मापता है जो शेयरहोल्डर्स को मिलता है। ईपीएस जितना ज़ायदा होगा, उतना अच्छा होगा। डाईलूटेड ईपीएस पर विचार करना चाहिए क्योंकि यह ईपीएस की कैलकुलेशन के लिए भविष्य की सभी कन्वर्टबल सिक्योरिटीज को ध्यान में रखता है।

सेगमेंट रिजल्ट्स

सेगमेंट रिजल्ट्स क्वार्टरली रिजल्ट्स का हिस्सा होता हैं। ये उन मेजर बिज़नेस सेगमेंट का खुलासा करता है जिनमें कंपनी ऑपरेट करती है और या तो प्रोडक्ट-बेस्ड सेगमेंट या जियोग्राफिक लोकेशन पर हो सकती है। इससे स्टेकहोल्डर्स को यह समझने में मदद मिलती है कि रेवेन्यू, प्रॉफिट या कॅपिटल एम्पलॉएड के मामले में कौन सा सेगमेंट एलिजिबल है। उपर दिए गए सभी एनालिसिस सेगेमेंट रिजल्ट्स पर लागू किए जा सकते हैं।

ज़रूरी बातें :

  • किसी कंपनी की क्वार्टरली, हाफ-इयरली और नौ महीने की रिपोर्ट या रिजल्ट्स का एनालिसिस करना महत्वपूर्ण है।
  • इन्वेस्टर्स, ट्रेडर्स और शेयरहोल्डर्स कंपनी के परफॉरमेंस कीप्रोग्रेस की निगरानी कर सकते हैं।
  • कंपनी के कामकाज में महत्वपूर्ण इनसाइट्स प्राप्त करने के लिए क्वार्टरली सेगमेंट रिजल्ट्स को भी पढ़ने की ज़रूरत है।
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