04. मल्टी टाइमफ्रेम ट्रेडिंग के बारे में सब कुछ

क्यूरेट बाय
विशाल मेहता
इंडिपेंडेंट ट्रेडर; टेक्निकल एनालिस्ट
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आप यहां क्या सीखेंगे

  • मल्टी टाइमफ्रेम ट्रेडिंग क्या है?
  • ट्रेडिंग स्टाइल के ऊपर बेस्ड अलग-अलग टाइमफ्रेम
  • ट्रेडर्स कैसे अलग-अलग टाइमफ्रेम के बीच सिलेक्शन कर सकते हैं
  • मल्टी टाइमफ्रेम ट्रेडिंग का ऑप्शन चुनते समय ध्यान रखने वाली ज़रूरी बातें

मल्टी-टाइमफ्रेम ट्रेडिंग एक ट्रेडिंग एप्रोच है जहाँ एक ही स्टॉक या सिक्योरिटी को अलग-अलग टाइमफ्रेम में देखा जाता है। एक मल्टी-टाइमफ्रेम ट्रेड के पीछे का मक़सद लॉन्ग टर्म टाइमफ्रेम में ट्रेंड्स की पहचान करना है और उसके अनुसार शार्टटर्म टाइमफ्रेम में एंट्री और एग्जिट के सही मौके को स्पॉट करना। उदाहरणार्थ, एक बड़ी टाइमफ्रेम में एक ट्रेंड की पहचान की जाती है, जैसे डेली चार्ट के बेसिस पर, और ये शार्ट टाइमफ्रेम जैसे एक घंटे का चार्ट में इस्तेमाल किया जाता है ताकि बेहतर एंट्री और एग्जिट प्लान किया जा सके।

All about Multiple Timeframe Trading

लॉन्ग-टर्म ट्रेंड्स की पहचान करने के अलावा, मल्टी-टाइमफ्रेम चार्ट पर लॉन्ग-टर्म सापोर्ट और रेजिस्टेंस ज़ोन्स की मार्किंग कर ट्रेंड रिवर्सल की भी पहचान की जा सकती है। एक बार लॉन्ग-टर्म टाइमफ्रेम में सापोर्ट और रेजिस्टेंस की मार्किंग हो जाने के बाद, शार्टटर्म टाइमफ्रेम में भी एंट्री और एग्जिट ठीक-ठीक किया जा सकता है। मल्टी-टाइमफ्रेम ट्रेडिंग एक बहुत ही कारगर तरीका है जिससे ट्रेड को हासिल करने की पॉसिबिल्टी बढ़ जाती है और रिस्क को कम कीया जाता है।

अलग-अलग प्रकार के ट्रेडर्स के लिए अलग-अलग टाइमफ्रेम

मार्केट अपने अंदर कई अलग अलग प्रकार के ट्रेडर्स को शामिल करता है। जिनकी अलग-अलग माइंडसेट और रिस्क क्षमता होती है। हो सकता है कि हर एक ट्रेडर एक ही स्क्रिप में ट्रेडिंग कर रहा हो, लेकिन अलग-अलग टाइमफ्रेम पर विचार कर रहा हो। जैसा कि ऊपर बताया गया है डिसकस किया गया है, हर एक ट्रेडर एक हायर टाइमफ्रेम में एक ट्रेंड की पहचान करता है और शॉर्टर टाइमफ्रेम में एक ट्रेड में एंट्री करना चाहता है।

ट्रेडर के प्रकार के आधार पर कुछ कॉमन टाइमफ्रेम

स्केल्पर एक पोटेंशियल या एक्सपेक्टेड सिग्नल के लिए 15 मिनट के चार्ट में एक पर्टिकुलर ट्रेंड को तलाश कर सकता है और एक मिनट के चार्ट में ट्रेड में एंट्री कर सकता है और अगले कुछ मिनटों में एग्जिट हो सकता है।

डे ट्रेडर एक पोटेंशियल ट्रेंड के लिए डेली चार्ट को देख सकता है और प्रति घंटा चार्ट या दो घंटे के चार्ट को देखकर ट्रेड में एंटर कर सकता है। डे ट्रेडर दिन के ट्रेडिंग सेशन से पहले अपनी पोजीशन बंद कर देता है।

स्विंग ट्रेडर कुछ दिनों के लिए एक पोजीशन को बनाये रखता है। इसका मक़सद चार्ट पैटर्न को देखकर ट्रेड की पहचान करना है। एक स्विंग ट्रेडर के लिए प्राइमरी टाइमफ्रेम डेली चार्ट है और एंट्री या एग्जिट चार्ट 4 घंटे का चार्ट होगा।

शार्ट-टर्म ट्रेडर कुछ हफ्तों के लिए पोजीशन को होल्ड किया रखता है और एक ट्रेंड की पहचान करने और डेली टाइमफ्रेम में एंटर/एग्जिट करने के लिए वीकली चार्ट का इस्तेमाल करता है।

लॉन्ग-टर्म ट्रेडर महीनों के लिए पोजीशन को होल्ड किया रखता है; मंथली चार्ट का इस्तेमाल करता है और वीकली चार्ट में एंटर करता है और अगर एंट्री/एग्जिट की फाइन ट्यूनिंग की ज़रूरत होती है तो डेली चार्ट का इस्तेमाल किया जाता है।

धयान रहे की ऊपर बताये गए मल्टी टाइमफ्रेम सिर्फ सजेशन के लिए है

मल्टी-टाइमफ्रेम एनालिसिस का इस्तेमाल करने के लिए कुछ इंडीकेटर्स

इसमें कोई शक नहीं की मल्टी-टाइमफ्रेम एनालिसिस ट्रेडर्स के लिए एक बहुत ही उपयोगी और पावरफुल टूल है। हालाँकि,इसके इफेक्टिव होने के लिए कुछ बातों को समझने की ज़रूरत है। उनमें से सबसे ज़रूरी टाइमफ्रेम का चुनाव है। एक टाइमफ्रेम चुनते समय कई मल्टी-टाइमफ्रेम बहुत करीब नहीं होना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक ट्रेंड को बनने में समय लगता है। अगर टाइमफ्रेम बहुत करीब है, तो वे सिर्फ एक दूसरे की तरह होंगे। एक टाइमफ्रेम जो बहुत ज़ायदा वाइड है वह भी इनइफेक्टिव हो सकता है। मार्केट में ट्रेडर्स द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उचित मल्टीप्ल या प्रोडक्ट 4 या 6 हैं। इसका मतलब है कि अगर एंट्री के लिए 15 मिनट की टाइमफ्रेम का इस्तेमाल किया जाता है तो हायर टाइमफ्रेम 60 मिनट या 90 मिनट का होना चाहिए। ट्रेडर्स एंट्री और एग्जिट को फाइन-ट्यून करने के लिए 3-टाइम फ्रेम के कॉम्बिनेशन का भी इस्तेमाल करते हैं। हालांकि फाइन-ट्यून के लिए अच्छा है कि 3-टाइम फ्रेम से ज़यादा न हो, वरना ट्रेड इन इफेक्टिव हो जाता है।

निष्कर्ष

मल्टी टाइमफ्रेम ट्रेडिंग बेहतर ट्रेड एंट्रीज और रिस्क रिवॉर्ड रेश्यो देता है। मैक्रो प्रेस्पेक्टिव के अलावा, यह माइक्रो लेवल पर ज़ूमिंग करने और प्राइस के बेहेवियर को देखने का चॉइस देता है। यह करेक्टिव एक्शन्स लेने या एग्जिट करने में मदद कर सकता है। हालांकि, कई ट्रेडर्स को मल्टी-टाइमफ्रेम चुनना मुश्किल लगता है। लेकिन प्रैक्टिस से इसे आसानी से दूर किया जा सकता है।

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